उद्नेव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को चुनौती दी है कि वे मध्यावधि चुनाव का सामना करें. सरकार और विधायक दल का नियंत्रण खो देने के बाद दो खेमों के बीच लड़ाई अदालतों और सड़कों तक जाती है, ऐसे में उद्धव को जो वास्तविक खतरा दिखाई दे रहा है वह यह कि कहीं पार्टी और सिम्बल (Symbol) उनके हाथ से न निकल जाए.
ठाणे, कल्याण और नवी मुंबई के पूर्व पार्षद शिंदे समूह के साथ बड़ी संख्या में शामिल हो गए है. उनके जाने के साथ ही उद्धव की बेचैनी बढ़ गई है जो उनकी मांग वाली बयानबाजी में दिखती है. ऐसा प्रतीत होता है कि फिलहाल ठाकरे परिवार का प्रभाव मुंबई तक ही सीमित है.
जब कोई पार्टी/ब्लॉक स्थिर सरकार बनाने की स्थिति में न हो तब ही मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं. यहां ऐसा मामला नहीं है, क्योंकि शिंदे ने महाराष्ट्र विधानसभा में 164-99 मतों के साथ आसानी से विश्वास मत हासिल किया है. वहीं उद्धव नैतिकता पर सवाल उठा रहे हैं और शिंदे खेमे पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने उनकी पीठ पर खंजर घोपा है.
इस तर्क के साथ उन्हें मध्यावधि चुनाव का आह्वान तब करना चाहिए था जब 2019 में बीजेपी-शिवसेना को जनादेश मिलने के बाद उन्होंने एनसीपी और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया था. जिन्हें (एनसीपी और कांग्रेस) विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला था.
क्या सुप्रीम कोर्ट उद्धव की शिवसेना को सांत्वना दिला सकती है?
सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे में कई मामलों की सुनवाई करने वाला है, जिसमें विधायकों की अयोग्यता, महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष का चुनाव, शिवसेना विधायक दल के नेता का चुनाव, शिंदे को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने का राज्यपाल का फैसला समेत और भी कई मामले शामिल हैं.
उद्धव को अब इस बात पर काफी हद तक भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना के बागियों को अयोग्य ठहराएगी, लेकिन वे इस बात से अनजान हैं कि भले ही शिंदे खेमे के सभी 40 विधायकों की सदस्यता खत्म हो जाएगी, फिर भी एनडीए सदन में आराम से 124-99 का ठोस बहुमत हासिल कर लेगा.
इसके बाद, उप-चुनावों में बीजेपी को विधानसभा में 144 (124+20) के बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए इन विद्रोहियों (20/40) में से केवल आधे को अपनी सीटें जीतने की जरूरत होगी. इस संकट के आने के बाद से उद्धव के रणनीतिकारों ने अपने गणित को गलत कर लिया है.
वैधताओं (legalities), चुनौतियों और अनिश्चितता से अवगत बेचैन उद्धव खेमे ने महाराष्ट्र विधानसभा प्रकरण की पुनरावृत्ति के डर से लोकसभा में पार्टी व्हिप बदल दिया है. पार्टी के 22 सांसद (लोकसभा में 19 और राज्यसभा में 3) हैं. शिवसेना के संसदीय दल में सेंध लगाना शिंदे खेमे का अगला लक्ष्य हो सकता है.
हालांकि इस समय ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अधिकांश सांसद उद्धव के पक्ष में हैं, लेकिन इनमें भी दरार दिखाई देने लगी है, एक सांसद ने यह मांग की है कि राष्ट्रपति पद के लिए शिवसेना को द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करना चाहिए. राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी व्हिप लागू नहीं होता है, यहां स्वयं के विवेक पर वोट दिया जाता है. ऐसे में मुझे यहां पर डर है कि अगर उद्धव खेमा विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करने का फैसला करता है तो उनमें से कुछ क्रॉस वोटिंग हो सकती है.