भारत का चंद्रयान-3 बुधवार शाम 6:04 बजे चांद पर उतरेगा। रूस ने 47 साल बाद एक बार फिर चांद की तरफ उड़ान भरी, लेकिन उसका स्पेसक्राफ्ट क्रैश हो गया। अमेरिका और चीन ने भी चांद पर अंतरिक्षयान उतारने के लिए एडवांस मिशन शुरू किए हैं। इस रेस में SpaceX जैसी कुछ प्राइवेट कंपनियां भी हैं।
देश और दुनिया की नजर मिशन मून चंद्रयान-3 पर टिकी हुई है। मिशन को लेकर जितना उत्साह और रोमांच है उतना ही चांद पर उतरना जटिल और मुश्किल। चांद पर लैंडिंग के लिए भेजे जाने वाले मिशनों की सफलता दर महज 35 फीसदी के आसपास है। लेकिन, मिशन को सफल बनाने में इसरो वैज्ञानिकों की टीम लगातार 24 घंटे 7 दिन मेहनत कर रही है।
भारत के दूसरे मून मिशन चंद्रयान-2 की साल 2019 में सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाई थी, जिसके बाद राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी (ISRO) ने तीसरे मिशन की तैयारी शुरू की। पिछली बार चंद्रयान-2 में जो कमियां थीं, उन्हें बारीकी से देखा गया और चंद्रयान-3 में इस तरह के बदलाव किए गए कि सॉफ्ट लैंडिंग आसानी से हो जाए। पहले ही बता दिया गया कि 2023 में अगला मून मिशन लॉन्च हो सकता है। इस मिशन का कुल बजट करीब 615 करोड़ का है।
- 6 जुलाई 2023 को ISRO की तरफ से जानकारी दी गई कि 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2:35 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-3 को लॉन्च किया जाएगा।
- 11 जुलाई तक इसरो साइंटिस्ट्स ने पूरी तैयारी कर ली और अब रिहर्सल की बारी थी. इसी दिन इसरो ने चंद्रयान-3 का ‘लॉन्च रिहर्सल’ पूरा कर लिया।
अब एक बार फिर चंद्रयान के लॉन्चिंग की बारी थी, पूरे देश और दुनिया की नजरें इस लॉन्चिंग पर टिकी थीं। 14 जुलाई को दोपहर के दो बजते ही सभी ने अपनी आंखें टेलीविजन पर जमा लीं, इसके बाद काउंटडाउन शुरू हो गया। श्रीहरिकोटा से ठीक 2:35 बजे चंद्रयान-3 लॉन्च हुआ और आसमान को चीरता हुआ चांद की ओर निकल पड़ा।
चांद की कक्षा में हुई एंट्री –
लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-3 ने पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था। प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल को अलग करने की कवायद से पहले इसे छह, नौ, 14 और 16 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में नीचे लाने की कवायद की गई, जिससे ये चंद्रमा की सतह के नजदीक आ सके। इसके बाद 17 अगस्त को लैंडर मॉड्यूल अलग हो गया।
क्यों मुश्किल है यह डगर ?
ध्यान रहे, 11 अप्रैल 2019 को इसराइल के बेयरशीट लैंडर चांद पर उतरने से ठीक पहले दुर्घटनाग्रस्त हो गया। 7 सितंबर 2019 को भारत का चंद्रयान-2 भी चांद की सतह से केवल 2.1 किलोमीटर दूर लैंडर विक्रम से कनेक्शन लॉस के चलते नाकाम हो गया। बाद में इसरो ने ऑर्बिटर से मिली तस्वीर के आधार पर इसकी हार्ड लैंडिंग की बात कही थी।
इसी तरह हाल ही में 26 अप्रैल 2023 को जापान के हाकुटो-आर का कनेक्शन भी कंट्रोल सेंटर से टूट गया। टोक्यो स्थित कंट्रोल सेंटर के मुताबिक आखिरी वक्त में कोई डाटा हासिल नहीं होने के चलते इसकी भी हार्ड लैंडिंग की आशंका जताई गई। अब भारत के चंद्रयान से मुकाबला कर रहे रूस के लूना 25 का हाल भी हर जानता है।
जहां तक इसके कारण की बात है, अभी तक चांद पर भेजे मिशन उत्तरी ध्रुव पर या बीच में सिर्फ इसलिए लैंड कर पाए हैं कि वहां सूरज की रोशनी और पर्याप्त समतल जगह उपलब्ध है। इसके उलट चांद का दक्षिणी ध्रुव न सिर्फ पथरीला और ऊबड़-खाबड़ है, बल्कि वहां सूर्य का प्रकाश भी नहीं पहुंच पाता। इस हिस्से की बेहद कम तस्वीरें अब तक मिल सकी हैं और इसी के चलते वैज्ञानिक सही से इस पर स्टडी नहीं कर पाए हैं।
दूसरा धरती की अपेक्षा चांद पर सिर्फ 16.6 प्रतिशत गुरुत्वाकर्षण ही उपलब्ध है। चांद पर वायुमंडल जैसी कोई चीज नहीं होने के चलते भी वहां उतरने वाले किसी भी यान की गति कम करने के लिए घर्षण बल नहीं लगता। इसके अलावा चांद पर पृथ्वी की भांति सैटलाइट सिग्नल का नेटवर्क भी नहीं है। एक सामान्य सिग्नल के आधार पर ही चांद पर उतरना संभव है, जिसके चलते चंद्रयान-3 के लैंडर को उतारने के लिए इसरो चंद्रयान-2 ऑर्बिटर का इस्तेमाल कर रहा है।