01/12/2023
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जिसे अग्नि-5 मिसाईल बता रहे हैं वो हाइपरसोनिक मिसाइल तो नहीं: गति, ऊँचाई और ट्राजेक्ट्री से उठे सवाल, भारत 4 साल से बनाने में जुटा

भारत 15 दिसंबर को देश की सबसे ताकतवर इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 के नाइट ट्रायल का सफल परीक्षण करता है। मिसाइल को ओडिशा के अब्दुल कलाम द्वीप से पहली बार पूरी रेंज में दागा गया है। इसने 5500 किलोमीटर दूर जाकर निशाने को सफलतापूर्वक तबाह किया।

केंद्र सरकार के कई मंत्री ट्वीट कर DRDO को बधाई भी देते हैं। वहीं डिफेंस की खबरों पर नजर रखने वाली वेबसाइट ने दावा किया है कि ये अग्नि-5 का नहीं, बल्कि हाइपरसोनिक ग्लाइड मिसाइल का परीक्षण है। यह दावा परीक्षण के दौरान मिसाइल की ऊंचाई, स्पीड और ट्रैजेक्टरी का एनालिसिस करने के बाद किया गया है।

इंडिपेंडेंट डिफेंस एक्सपर्ट कहते हैं कि परीक्षण के समय जिस तरह से अग्नि-5 मिसाइल धरती के वातावरण में काफी नीचे उड़ते हुए गई है, उससे साफ पता चलता है कि ये बैलिस्टिक मिसाइल नहीं थी। एक्सपर्ट कहते हैं कि कोई बैलिस्टिक मिसाइल पहले अंतरिक्ष में जाती है। इसके बाद वहां से वह अपने टारगेट की ओर जाती है।

डिफेंस की खबरों का एनालिसिस करने वाली वेबसाइट इंडियन एयरोस्पेस डिफेंस न्यूज यानी IADN के मुताबिक, यह परीक्षण हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल जैसा है। इसकी वजह है लो ट्रैजेक्टरी यानी कम ऊंचाई पर इसका उड़ान भरना। एक ट्विटर थ्रेड में IADN ने 2018 में चीन की हाइपरसोनिक मिसाइल DF-ZF HGV के लॉन्चिंग की तस्वीर पोस्ट कर इसकी तुलना अग्नि-5 से की है।

इसमें बताया गया है कि इन दोनों मिसाइलों की लॉन्चिंग एक जैसी है। IADN ने अपने ट्वीट में कहा है कि हाल ही में अग्नि-5 मिसाइल परीक्षण की जो तस्वीरें आई हैं, उन्हें देखकर इसे बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण नहीं कहा जा सकता है। स्थानीय लोगों द्वारा लिए गए वीडियो को पोस्ट कर दिखाया गया है कि मिसाइल स्टीप कर्व यानी तेजी से ऊपर जाने के बाद दिशा बदल लेती है, जबकि बैलिस्टिक मिसाइल के परीक्षण में ऐसा नहीं होता है।

2018 से हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने में जुटा है DRDO

डिफेंस एक्सपर्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर) जेएस सोढी कहते हैं कि इसके हाइपरसोनिक मिसाइल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि अग्नि-5 की रेंज और स्पीड हाइपरसोनिक मिसाइल जैसी है। डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानी DRDO 2020 में हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटेड व्हीकल यानी HSTDV का सफल परीक्षण कर चुका है। देखा जाए तो DRDO 2018 से ही हाइपरसोनिक मिसाइलों पर काम कर रहा है।

साथ ही भारत, रूस के सहयोग से ब्रह्मोस-II मिसाइल के विकास में जुटा है, जोकि एक हाइपरसोनिक मिसाइल है। ब्रह्मोस-II की रेंज 1500 किमी तक होगी और स्पीड साउंड से 7-8 गुना ज्यादा (करीब 9000 किमी/घंटे) होगी। इसकी टेस्टिंग 2024 तक होने की उम्मीद है।

अब जानते हैं कि हाइपरसोनिक मिसाइल क्या होती है?

बादलों की गड़गड़ाहट के साथ होने वाली मूसलाधार बारिश तो आप सभी ने देखी होगी। आपको तेज धमाकेदार आवाज के साथ बिजली का कौंधना भी याद होगा। इस दौरान आसमान सफेद रोशनी से भर जाता है, लेकिन उसका धमाका चकाचौंध के काफी देर बाद सुनाई देता है। यानी आवाज काफी पीछे छूट जाती है। बस ऐसी ही होती है हाइपरसोनिक मिसाइल।

आवाज की स्पीड से 10 गुना तेज। दूसरे शब्दों में कहें तो जब तक यह मिसाइल निशाने को तबाह करती है, तब तक तो इसकी आवाज 10 गुना पीछे होती है।

हाइपरसोनिक मिसाइलों से जुड़ी 5 खास बातों को जानिए

1. साउंड से 5-10 गुना तेज होती है स्पीड

आमतौर पर हाइपरसोनिक मिसाइलों की गति मैक 5 होती है, यानी 5000-6000 किलोमीटर प्रति/घंटे। अग्नि-5 मिसाइल की स्पीड मैक 24 की है यानी साउंड से 24 गुना ज्यादा तेज रफ्तार।

2. हाइपरसोनिक मिसाइलों को पकड़ पाना मुश्किल

इन मिसाइलों की सबसे खास बात ये है कि तेज स्पीड, लो ट्रैजेक्टरी, यानी कम ऊंचाई पर उड़ान की वजह से इन्हें अमेरिका समेत दुनिया के किसी भी रडार से पकड़ पाना मुश्किल होता है। इसी वजह से इन्हें दुनिया का कोई भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम मार नहीं सकता है।

3. परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम

हाइपरसोनिक मिसाइलें कई टन परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम होती हैं। ये मिसाइलें 480 किलोग्राम के परमाणु हथियार या ट्रैडिशन हथियार कैरी कर सकती हैं।

4. आम मिसाइलों से ज्यादा विध्वसंक

अंडरग्राउंड हथियार गोदामों को तबाह करने में हाइपरसोनिक मिसाइलें सबसोनिक क्रूज मिसाइलों से ज्यादा घातक होती हैं। डिफेंस एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अपनी बेहद हाई स्पीड की वजह से हाइपरसोनिक मिसाइलें ज्यादा विध्वसंक होती हैं।

5. हवा में रास्ता बदलने की क्षमता

ये मिसाइलें मेनुरेबल टेक्नोलॉजी यानी हवा में रास्ता बदलने में माहिर होती है। इससे ये जगह बदल रहे टारगेट को भी निशाना बना सकती हैं। इस क्षमता की वजह से इनसे बच पाना मुश्किल होता है।

कितने तरह की होती हैं हाइपरसोनिक मिसाइलें?

हाइपरसोनिक मिसाइल दो तरह की होती हैं- हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल और हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल।

1. हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल

हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए एक हाई स्पीड जेट इंजन का इस्तेमाल करती है, जिससे उसे साउंड से 5 गुना अधिक (मैक 5) स्पीड हासिल करने में मदद मिलती है। ये एक नॉन-बैलिस्टिक मिसाइल होती है। ये बैलिस्टिक मिसाइलों से अलग तरीके से काम करती है, जो अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए ग्रेविटेशन फोर्स का इस्तेमाल करती हैं।

2. हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल

हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल को एक रॉकेट से लॉन्च किया जाता है। लॉन्च होने के बाद ग्लाइड व्हीकल रॉकेट से अलग हो जाता है और टारगेट की ओर कम से कम मैक-5 की गति से ग्लाइड करता है यानी बढ़ता है।

हाइपरसोनिक मिसाइलों की रेस में रूस, अमेरिका-चीन से आगे

रूस, अमेरिका और चीन वर्षों से हाइपरसोनिक मिसाइलों में जमकर निवेश कर रहे हैं। हालांकि इस रेस में रूस सबसे आगे है।

रूस : यूक्रेन में रूस ने किंझल हाइपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल कर चुका है। इसके अलावा उसके पास 2019 से ही अवनगार्ड नामक एक और हाइपरसोनिक मिसाइल है। इसके अलावा रूस के पास 3M22 जिरकोन नामक एंटी-शिप हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल भी है।

अमेरिका : अमेरिका 2011 से ही हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने में जुटा है और कई मिसाइलों के टेस्ट कर चुका है। लॉकहीड मार्टिन ने हाल ही में अमेरिकी सरकार के साथ हाइपरसोनिक कंवेशनल स्ट्राइक वेपन और AGM-1831 एयर लॉन्च्ड रैपिड रेस्पॉन्स वेपन बनाने के लिए करार किया है। अमेरिका के पास पहली हाइपरसोनिक मिसाइल के 2023 तक आने की संभावना है।

चीन : अमेरिका ने पिछले साल जुलाई में चीन पर हाइपरसोनिक मिसाइल के टेस्ट का आरोप लगाया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन D-17 हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने के करीब है। वह 2018 में ही लिंगयुन-1 नामक हाइपरसोनिक मिसाइल का टेस्ट कर चुका है। साथ ही DF-ZF हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने के करीब है और स्टैरी स्काई-2 नामक मैक 6 स्पीड (करीब 7000 किमी/घंटे) वाली हाइपरसोनिक मिसाइल का भी टेस्ट कर चुका है। अमेरिका के मुताबिक, पिछले 5 वर्षों में चीन सैकड़ों हाइपरसोनिक मिसाइलों का टेस्ट कर चुका है, जबकि अमेरिका ने ऐसे कुल 9 टेस्ट ही किए हैं।

 

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