7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरू हुई कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा 30 जनवरी को श्रीनगर में समाप्त हुई.
भारत जोड़ो यात्रा के समापन कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कांग्रेस ने 21 दलों को न्योता दिया था, इनमें से 11 कार्यक्रम में मौजूद रहे और आठ पार्टियां नदारद रहीं.
समारोह में फ़ारूख़ अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस, महबूबा मुफ़्ती की पीडीपी और कमल हासन की मक्कल नीधि मय्यम (एमएनएम) शामिल रहीं.
इसके अलावा डीएमके, दलित पैंथर्स, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, झारखंड मुक्ति मोर्चा, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), फॉर्वर्ड ब्लॉक, सीपीआई और बीएसपी ने भी मौजूदगी दर्ज करवाई. वहीं आठ प्रमुख पार्टियां कार्यक्रम से नदारद रही हैं.
ये पार्टियां भारत जोड़ो यात्रा से गायब रहीं –
- बिहार में कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी जनता दल यूनाइटेड
- राष्ट्रीय जनता दल
- सीपीआई (एम)
- पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस
- अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी
- शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी
- उद्धव ठाकरे की शिवसेना
- तेलगुदेशम पार्टी
शिवसेना, एनसीपी और सीपीएम ने यात्रा के दौरान इसका समर्थन किया था और पार्टी के नेता यात्रा में शामिल हुए थे.
हालांकि जदयू ने पहले ही निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया था. समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने भी श्रीनगर कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर कोई संकेत पहले नहीं दिया था.
वहीं कांग्रेस ने इस कार्यक्रम के लिए दिल्ली और पंजाब में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी और तेलंगाना में सरकार चला रही चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्रपति समिति को न्योता नहीं दिया था.
श्रीनगर के कार्यक्रम में शामिल ना होने के सवाल पर समाजवादी पार्टी के नेता उदयवीर सिंह ने कहा, “किसी एक राजनीतिक दल के कार्यक्रम में शामिल ना होने को विपक्ष की एकजुटता से जोड़कर देखना सही नहीं है.”
उदयवीर कहते हैं, “हर दल अपने कार्यक्रम कर रहा है, हमारा दल भी अपने कार्यक्रम कर रहा है. सांकेतिक रूप से इकट्ठा होने की बजाय विपक्ष का एक साझा एजेंडे के साथ एकजुट होना अधिक महत्वपूर्ण है.”
उदयवीर ने कहा, “एक दूसरे की दलीय और राजनीति की सीमाओं, क्षेत्रीय और विशेष मुद्दे, जिन पर शिकायतें रही हैं, उनका साफ़ किया जाना ज्यादा ज़रूरी है. समय-समय पर विपक्ष एकजुट होता रहा है. समाजवादी पार्टी विपक्ष की एकजुटता के साथ हैं. अगर विपक्ष की राजनीति में कुछ दल ऐसे हैं जो थोड़ा सा दूर रहकर अधिक सहज हैं तो उन्हें भी समझना होगा.”
वहीं राष्ट्रीय जनता दल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से जुड़े जयंत जिज्ञासु कहते हैं, “राष्ट्रीय जनता दल हमेशा ही संविधान और देश बचाने की मुहिम से जुड़ा रहा है. हमारी पार्टी ने कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन किया है. हमारी उत्तर प्रदेश ईकाई ने भी इस यात्रा को समर्थन दिया है. अगर विपक्षी दल या विपक्षी एकता मज़बूत होती है तो राजद हमेशा से उसके साथ है.”
वहीं श्रीनगर में सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि कि बीजेपी से देश को आज़ाद कराने के लिए सभी धर्मनिरपेक्ष दलों को साथ आना होगा.
भारत जोड़ो यात्रा के तहत 14 राज्यों और क़रीब चार हज़ार किलोमीटर का सफ़र करने वाले राहुल गांधी ने रविवार को श्रीनगर में कहा कि विपक्ष में मतभेद है.
विपक्ष में मतभेद लेकिन विपक्ष साथ आएगा
राहुल गांधी से जब पत्रकारों ने विपक्ष के बिखरे होने को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा, ‘विपक्षी एकता बातचीत और एक दृष्टिकोण के बाद आती है. यह कहना सही नहीं है कि विपक्ष बिखरा हुआ है. मतभेद हैं… लेकिन विपक्ष साथ खड़ा होगा, लड़ेगा. ‘
राहुल गांधी अपने आप को भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा के विरुद्ध पेश करते रहे हैं.
राहुल अपनी यात्रा के दौरान बार-बार कहते रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी और रष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश को बांट रहे हैं और वो देश को एकजुट करने का काम कर रहे हैं.
हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिए भले ही राहुल गांधी ने अपने आप को एक गंभीर नेता के रूप में पेश किया हो लेकिन वो विपक्ष को पूरी तरह एकजुट करने में नाकाम रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश कहते हैं, “जहां तक इस यात्रा के ज़रिए विपक्ष को जोड़ने का सवाल है तो कांग्रेस पार्टी या राहुल गांधी अभी तक इस यात्रा के ज़रिए विपक्ष को एकजुट करने में बहुत कामयाब नहीं हुए हैं. “
भारत जोड़ो के मंच पर विपक्ष के एकजुट ना हो पाने को लेकर उर्मिलेश कहते हैं, “विपक्ष दलों की अपनी-अपनी स्थिति और अपने-अपने कारण हैं, वहीं कांग्रेस की भी अपनी वजहें हैं. ये नहीं कहा जा सकता है कि एक तरफ से ही विपक्षी एकजुटता कमज़ोर हो रही है.”
भारतीय जनता पार्टी इस समय ताक़तवर है. उसके पास केंद्र और देश के कई अहम राज्यों में सत्ता है. इसके अलावा पार्टी का संगठनात्मक ढांचा भी बेहद मज़बूत है. नरेंद्र मोदी के रूप में भाजपा के पास करिश्माई नेतृत्व भी है.
ऐसे में विश्लेषक मानते हैं कि विपक्ष अगर साल 2024 में भाजपा को मज़बूत चुनौती देना चाहता है तो एकजुट होना वक़्त की ज़रूरत है.
उर्मिलेश कहते हैं, “केंद्र में जब-जब ताक़तवर सत्ता रही है, चाहे वो इंदिरा गांधी का दौर रहा हो या फिर राजीव गांधी या उनसे कुछ कमज़ोर वाजपेयी, जब भी ये सत्ता बदली विपक्ष में गठबंधन की मोर्चेबंदी से ही बदली.”
उर्मिलेश ने कहा, “कई बार जब जनता अपने मुद्दों को लेकर सत्ता के विरोध में भी होती है, तब भी वो विपक्ष में बिखराव की वजह से समझ नहीं पाती है कि सत्ता के ख़िलाफ़ किसे वोट करें. यही बिखराव सत्ताधारी दल के लिए फ़ायदेमंद हो जाता है.”
विपक्ष के लिए एकजुट होना भले ही वक्त की ज़रूरत हो लेकिन अभी भी विपक्षी दल राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर रहे हैं. हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि राहुल गांधी विपक्ष का केंद्र बन रहे हैं
वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर कहते हैं, “आज सवाल ये है कि पूरे देश में मोदी और बीजेपी के ख़िलाफ़ केंद्र में कौन होगा, इस यात्रा से राहुल ने इसका जवाब देने की कोशिश की है. उन्होंने अपने आप को विपक्ष के केंद्र के रूप में पेश किया है.”
मुश्किल है चुनाव से पहले विपक्ष का एकजुट होना ?
लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता का मुद्दा उठता रहा है और इसे लेकर प्रयास भी होते रहे हैं. लेकिन चुनाव से पहले विपक्ष का कोई बड़ा गठबंधन या मोर्चा नहीं बन पाता है.
इस समय भारत की राजनीति दो हिस्सों में बँटी है. एक तरफ बीजेपी और उससे जुड़े संगठन हैं जो केंद्र और कई राज्यों में सरकार चला रहे हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस और विपक्षी दल हैं.
कांग्रेस ने श्रीनगर के कार्यक्रम के लिए विपक्षी दलों को न्योता दिया था लेकिन कई दल नहीं पहुंचे. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक इससे हैरान नहीं हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विनोद शर्मा कहते हैं, “विपक्षी दलों का राहुल के साथ मंच पर ना आना कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि एक मज़बूत कांग्रेस कई क्षेत्रीय दलों के लिए ख़तरनाक़ साबित होगी. भारत राष्ट्र समिति, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी या समाजवादी पार्टी क्यों चाहेंगी कि कांग्रेस मज़बूत हो या मज़बूत दिखे. अगर कांग्रेस मज़बूत होगी तो वो इन्हीं दलों के वोटबैंक पर चोट करेगी. कांग्रेस से अल्पसंख्यक वर्ग का वोट छिटक गया था, वो अब कांग्रेस की तरफ़ आ सकता है. कई विपक्षी दल ये नहीं चाहेंगे कि ऐसा हो.”
वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर मानते हैं कि राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिए अपने आप को विपक्ष के नेताओं में सबसे आगे कर लिया है. राजकिशोर कहते हैं, “विपक्ष में रह-रहकर क्षेत्रीय नेता सामने आ रहे थे. कभी ममता बनर्जी, कभी नीतीश कुमार, कभी केसीआर तो कभी अरविंद केजरीवाल. लेकिन इस यात्रा के ज़रिए राहुल ने ये साबित करने की कोशिश की है कि देश में सत्ता के विपक्ष का केंद्र वही हैं.”
कांग्रेस महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड में क्षेत्रीय स्तर पर गठबंधन में है. विश्लेषक मानते हैं कि हो सकता है चुनाव से पहले ये गठबंधन बनें रहें.
विनोद शर्मा कहते हैं, “महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी बना रहेगा. बिहार में महागठबंधन और झारखंड में गठबंधन भी बना रहेगा. इसके अलावा तमिलनाडु में भी गठबंधन रहेगा. लेकिन जहां-जहां क्षेत्रीय दल मज़बूत हैं, वहां पर गठबंधन की संभावना कम होगी. वहां हो सकता है चुनाव में दोस्ताना प्रतिद्वंदिता हो.”
विनोद शर्मा मानते हैं कि आगे जो भी फ्रंट बनेगा, जो सत्ता पर दावा कर सकेगा या भारतीय जनता पार्टी के समक्ष खड़ा होकर उसे ललकार सके, वो चुनाव से पहले नहीं बनेगा बल्कि चुनाव के बाद बनेगा.
विनोद शर्मा कहते हैं, “साल 2004 में जब यूपीए की सरकार बनी थी तो गठबंधन चुनाव से पहले नहीं बना था. चुनाव के बाद मुलायम सिंह यादव बिना बुलाए सोनिया गांधी के पास गए थे. पुराना अनुभव हमें बताता है कि आज विपक्षी एकता की उम्मीद रखना एक सपना है, आज सभी दल ख़ुद को मज़बूत करने में लगे हैं और चुनाव के बाद कौन कितनी सीटें पाता है, गठबंधन इसी पर निर्भर करेगा.”
भारत जोड़ो यात्रा के बाद क्या विपक्ष राहुल गांधी को अपना नेता मान लेगा ?
मोदी और अमित शाह समेत बीजेपी के कई बड़े नेता ये कहने लगे थे कि उनका उद्देश्य भारत को ‘कांग्रेस मुक्त’ करना है.
हालांकि जानकार मानते हैं कि कांग्रेस का प्रदर्शन चाहे जितना भी ख़राब रहा हो लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि कांग्रेस अब भी प्रमुख विपक्षी दल है और ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का असल अर्थ ‘विपक्ष मुक्त भारत’ है.
राहुल गांधी या कांग्रेस के दूसरे नेता भले ही इसे ग़ैर-राजनीतिक क़रार दें लेकिन इन राजनीतिक सवालों का उठना लाज़मी है कि क्या भारत की राजनीति इस समय वाक़ई विपक्ष मुक्त हो चुकी है? और अगर ऐसा है तो क्या भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी को विपक्ष के नेता पर स्थापित करने में कुछ हद तक सफलता पाई है?
इसी से जुड़ा एक दूसरा अहम सवाल यह भी है कि इस यात्रा से भारत की जनता को राहुल गांधी आख़िर क्या संदेश देना चाहते हैं और वो इसमें किस हद तक सफल हुए हैं? दोनों ही सवाल अहम बहुत अहम हैं. लेकिन पहले बात करते हैं विपक्ष की राजनीति की.
जनता दल-यू के महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद केसी त्यागी कहते हैं कि राहुल गांधी ने भी कभी यह नहीं कहा कि वो ख़ुद को विपक्ष का नेता स्थापित करने के लिए यह यात्रा कर रहे हैं.