राजस्थान विधानसभा के इस सत्र की अगली कार्यवाही 28 फरवरी से शुरू होगी। भारतीय जनता पार्टी बिना नेता प्रतिपक्ष के विधानसभा में शामिल होगी। हालांकि उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ सदन में होंगे, लेकिन उप नेता प्रतिपक्ष का विधानसभा के नियमों में कोई पद नहीं है।
ऐसे में अब नेता प्रतिपक्ष को लेकर एक बार फिर चर्चाएं तेज होंगी। राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष को लेकर कई संभावनाएं जताई जा रही हैं। राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष बनाना बीजेपी के लिए कितना चुनौतीपूर्ण है और यह कैसे राजस्थान की राजनीति पर असर डालेगा.
राजस्थान बीजेपी में इस वक्त स्थितियां बेहद उलझी हुई हैं। राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष को लेकर अब तक जहां पार्टी स्पष्टता नहीं दे पाई है, वहीं दूसरी ओर गुलाबचंद कटारिया के असम का राज्यपाल बनाए जाने से अब नेता प्रतिपक्ष के लिए नेता के चयन का एक नया सिरदर्द पार्टी के लिए खड़ा हो गया है।
इसी बीच, केंद्र सरकार में मंत्रिमंडल पुनर्गठन भी होना है, उसे लेकर भी राजस्थान से कुछ नेता लाइन में खड़े हैं। इधर, राजस्थान में संगठन महामंत्री के बदले जाने की चर्चाएं और अफवाहें भी जोरों पर हैं। चुनाव से ठीक 8 महीने पहले बीजेपी के लिए सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखते हुए इन पदों पर नेताओं की नियुक्ति करना टेड़ी खीर है।
आपसी खींचतान है सबसे बड़ा सिरदर्द
राजस्थान उन राज्यों में है, जहां बीजेपी के भीतर आंतरिक खींचतान चरम पर है। राजस्थान में नेताओं के धड़े आपस में बंटे हुए हैं। इसका हालिया नमूना तब देखने को मिला जब एक ओर 4 मार्च को जहां वसुंधरा राजे का जन्मदिन महोत्सव सालासर में मनाए जाने की तैयारियां चल रही थीं।
वहीं, दूसरी ओर प्रदेश संगठन की ओर से 4 मार्च को रीट भर्ती प्रकिया से जुड़ी अव्यवस्थाओं को लेकर विरोध-प्रदर्शन की तारीख तय कर दी गई। इसे लेकर दोनों धड़ों के नेताओं के अपने मत हैं। ऐसे में खींचतान के बीच बीजेपी के लिए नए नेताओं की नियुक्ति किसी माथापच्ची से कम नहीं।
फिलहाल इस तरह है बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग
जाट : राजस्थान में जाति के तौर पर जाट सबसे बड़ा वोट बैंक है। यही वजह है कि बीजेपी ने वर्तमान में कई अहम पदों पर जाट नेताओं को काबिज किया हुआ है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ इसी कौम से आते हैं और वे राजस्थान के रहने वाले हैं। इसी तरह प्रदेशाध्यक्ष के रूप में डॉ. सतीश पूनिया और केंद्रीय मंत्री के रूप में कैलाश चौधरी राजस्थान में जाट समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
राजपूत : राजपूत भी राजस्थान का बेहद अहम वोट बैंक है। यही वजह है बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां इस वोट बैंक को साधे रखने की कोशिश करती हैं। फिलहाल राजस्थान में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ इस जाति से हैं। हालांकि उप नेता प्रतिपक्ष का पद इतना प्रभावी नहीं है।
ब्राह्मण-वैश्य : राजस्थान का एक और बड़ा वोट बैंक ब्राह्मणों का है। इसके बावजूद वर्तमान में देखा जाए तो बीजेपी में कोई बेहद अहम दायित्व ब्राह्मण चेहरे को नहीं दिया गया है। संगठन के कुछ छोटे-मोटे पदों के अलावा घनश्याम तिवाड़ी के रूप में राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं।
इसके अलावा वैश्य समुदाय से भी कोई चेहरा किसी खास पद पर नहीं। कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद राजस्थान में वैश्य समुदाय का यह कॉलम भी खाली हो गया है।
दलित : दलितों की संख्या राजस्थान में अच्छी है। इनमें सबसे बड़ा वोट बैंक मेघवाल जाति का है। यही वजह है कि अर्जुन मेघवाल के रूप में राजस्थान से केंद्रीय मंत्री हैं।
आदिवासी : आदिवासी समुदाय में मीणा सबसे बड़ा वोट बैंक है। इसी के चलते डॉ. किरोड़ीलाल मीणा को राजस्थान से राज्यसभा सांसद बनाया हुआ है। कुल मिलाकर 12 प्रतिशत वोट बैंक राजस्थान में आदिवासियों का है, मगर सांसद के अलावा इस समुदाय को कोई खास प्रतिनिधित्व बीजेपी में अब तक नहीं है।
अन्य : इसके अलावा ओबीसी-माली के रूप में राजेंद्र गहलोत राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं। मगर मोटे तौर पर ये ही वो जातियां हैं जो राजस्थान की राजनीति को वोट के रूप में प्रभावित करती हैं। इनके अलावा मुसलमान और गुर्जर ये दो बड़े वोट बैंक ही ऐसे हैं जिनमें बीजेपी के पास न कोई बड़ा नेता मौजूद है, न ही बीजेपी ने जिन्हें संगठन या सत्ता में कोई विशेष जगह दी है।
इनके अलावा अब तक तो बीजेपी ने इनमें काफी हद तक संतुलन साधे रखा है। मगर आने वाले दिनों में होने वाली नियुक्तियों से अगर किसी धड़े या समुदाय का पलड़ा भारी होता है या किसी का कम तो उसका असर चुनाव पर दिखता है। यही वजह है कि बीजेपी नेता प्रतिपक्ष का चुनाव नहीं कर पा रही है।