कुछ दिन शांति के बाद आखिर गहलोत पर क्यों हमलावर हुए ?
कांग्रेस में कुछ दिनों की शांति के बाद एक बार फिर राजनीति गरमा गई है। हाईकमान से बार-बार आश्वासनों के बावजूद खुद के पक्ष में कोई फैसला न होते देख सचिन पायलट आक्रामक हो गए हैं।
अचानक पायलट की सक्रियता से कांग्रेस में अंदरखाने चर्चा है कि अब पायलट आर-पार की निर्णायक लड़ाई के दौर में हैं।
पायलट ने अपनी सभाओं में भीड़ जुटाकर न सिर्फ विरोधी खेमे और राष्ट्रीय नेतृत्व को ताकत दिखाने की कोशिश की बल्कि इसके जरिए अपने समर्थकों में भी यह मैसेज देने की कोशिश की कि अभी उन्होंने हार नहीं मानी है।
क्या पायलट वाकई निर्णायक दौर की लड़ाई लड़ रहे हैं? क्या अभी भी उनके सीएम बनने की संभावनाएं है? या वे कांग्रेस से अलग राह चुनने की ओर बढ़ रहे हैं?
क्या अब भी सीएम बन सकते हैं?
हालांकि, पहले कांग्रेस हाईकमान चाहता था कि पायलट को सीएम बनाया जाए। इसीलिए बीते सितंबर माह में दिल्ली से ऑब्जर्वर भेजे गए थे, लेकिन उस समय विधायकों के इस्तीफों से खड़े हुए सियासी संकट के कारण फैसला टल गया।
पीसीसी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक अब काफी देरी हो चुकी है। पायलट के सीएम बनने की संभावनाएं लगभग खत्म हो चुकी हैं।
सितंबर के सियासी संकट के बाद पहले राहुल गांधी की यात्रा और अब बजट सत्र के कारण फिलहाल सीएम की कुर्सी पर बदलाव की संभावना नहीं है।
करीब डेढ़ माह तक चलने वाले बजट सत्र के बाद इतना समय नहीं बचेगा कि कांग्रेस राजस्थान में सीएम बदलने जैसा कदम उठाए। अगर हाईकमान चाहेगा तो भी गहलोत खेमा इसके लिए तैयार नहीं होगा।
पायलट समर्थक एक विधायक का कहना है-गहलोत खेमा पायलट के नाम पर पहले भी राजी नहीं था, आगे भी राजी नहीं होगा।
गहलोत के बयानों से यह साफ झलकता है कि वे किसी भी स्थिति में पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। बजट सत्र के बाद आचार संहिता लगने में मात्र छह माह का समय बचेगा।
ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व ऐन चुनाव से पहले पंजाब जैसी गलती राजस्थान में नहीं करना चाहेगा। दिल्ली की तरफ से इस मामले में सितंबर के बाद अभी तक कोई कदम नहीं उठाना इसी बात का संकेत है कि अब राजस्थान में सीएम के बदलाव का समय निकल चुका है।
पेशेंस रखने के सिवा कोई चारा नहीं
पायलट खेमे के नजदीकी एक कैबिनेट मंत्री ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा- अब पायलट के सीएम बनने का समय निकल गया है।
कांग्रेस की मौजूदा स्थितियों में पायलट के पास पेशेंस रखने के सिवा कोई चारा नहीं है। वे अगर सब्र रखते हैं तो आने वाले समय के लिए कांग्रेस में वे ही अगले लीडर हैं। क्योंकि वे युवा हैं और उनके पास अभी राजनीतिक करियर के लिए काफी समय है।
अभी स्थितियां ऐसी हैं कि उनकी सीएम बनने की संभावनाएं न के बराबर दिख रही हैं। अशोक गहलोत को हटाकर पायलट को सीएम बनाने की हाईकमान अब दोबारा कोशिश नहीं करेगा।
ऐसी कोशिश का एक बार हश्र हाईकमान सितंबर में देख चुका है। यही कारण है कि हाईकमान की ओर से लगातार इस मुद्दे को खींचा जा रहा है। सितंबर के घटनाक्रम को चार माह निकल गए, लेकिन हाईकमान चुप है।
क्या पायलट नई पार्टी बना सकते हैं?
कांग्रेस में अंदरखाने यह चर्चा जोरों पर है कि पायलट कांग्रेस से अलग राह चुन सकते हैं। कांग्रेस के ऐसे लोग जो किसी भी गुट से जुड़े नहीं है, वे यह भी संभावना जताते हैं कि पायलट नई पार्टी बनाकर चुनाव में उतर सकते हैं।
तर्क दिया जा रहा है कि हाल के दौरों और सभाओं के जरिए पायलट इसी बात की थाह ले रहे हैं कि नई पार्टी बनाते हैं तो वे कितना सफल हो पाएंगे। हालांकि, पायलट के नजदीकी लोग इस बारे में कुछ भी खुलकर नहीं बोलते।
पीसीसी चीफ बनाकर चुनाव में फ्री हैंड दे दिया जाए
कांग्रेस हाईकमान यह फैसला ले सकता है कि पायलट को अगली बार के लिए कमिटमेंट करके मना लें। चुनाव से पहले पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान देकर टिकट वितरण के लिए फ्री हैंड दे दिया जाए।
ऐसा करके पायलट को इस बात के लिए मनाया जाए कि अगर प्रदेश में सरकार रिपीट होती है तो अगले सीएम वे ही होंगे।
गहलोत को चुनाव तक सीएम रखा जाए और बजट घोषणाओं को लागू करने का समय दिया जाए। इस बात की संभावना ज्यादा है कि अगर पायलट को टिकट वितरण के लिए फ्री हैंड मिलता है तो वे पीसीसी चीफ बनने के लिए राजी हो जाए।
ऐसे क्या कारण रहे कि पायलट खेमा अचानक सक्रिय हुआ……
कांग्रेस के जानकार बताते हैं कि पायलट को दिल्ली से लगातार सीएम बनाने के आश्वासन मिलते रहे हैं। सितंबर में सीएम का चेहरा बदलने की कवायद इसीलिए शुरू हुई थी, लेकिन गहलोत कैंप भारी पड़ गया। इसके बाद हाईकमान की ओर से सीएम बदलने की कोशिश नहीं हुई। लगातार इंतजार के बाद पायलट खेमे का सब्र टूट गया।
किस वजह से पायलट खेमा अचानक सरकार के खिलाफ सक्रिय हुआ…
क्या हाईकमान ने गहलोत को फ्री हैंड दे दिया?
पायलट की ग्राउंड पर अचानक सक्रियता के पीछे यह संभावना जताई जा रही है कि उनके समर्थकों को लग रहा है कि हाईकमान ने गहलोत को फ्री हैंड दे दिया है। पायलट खेमा यह मानकर चल रहा है कि हाईकमान फिलहाल कोई फैसला लेने वाला नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विवाद का नया माहौल पायलट के दौरों और सभाओं के कारण गरमाया है।
इसके पीछे विश्लेषक बताते हैं कि लगातार हाईकमान की ओर से फैसला करने में हुई देरी इसका बड़ा कारण है।
पहले यह मानकर चला जा रहा था कि राहुल गांधी की यात्रा राजस्थान से गुजर जाने के बाद हाईकमान राजस्थान के बारे में कोई फैसला करेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
इस बीच बजट सत्र की घोषणा हो गई। 23 जनवरी से विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है और जैसा कि सीएम गहलोत कह चुके हैं- 8 फरवरी को बजट पेश होगा।
ऐसे में यह साफ है कि फरवरी और मार्च का आधा महीना बजट सत्र में गुजर जाएगा। समय गुजर रहा है और दिल्ली चुप्पी साधे हुए है, पायलट कैंप में इससे कसमसाहट है।
क्या तीन नेताओं पर कार्रवाई नहीं होने से सब्र टूटा ?
25 सितंबर को हुई बगावत के मामले में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल, जलदाय मंत्री महेश जोशी और आरटीडीसी अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौड़ पर कार्रवाई होनी थी। बड़े नेताओं के बार-बार बयान भी आए कि अनुशासनहीनता करने वालों पर कार्रवाई होगी।
संगठन महासचिव वेणुगोपाल ने राहुल गांधी की यात्रा के राजस्थान में रहते यह कहा था कि अभी तीनों को क्लीन चिट नहीं मिली है।
लेकिन तीनों पर हाईकमान की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई। तीनों नेताओं पर अभी तक कार्रवाई नहीं होने से भी पायलट खेमा नाराज है।
इस्तीफे वापस हो गए, क्या हाईकमान ने मान लिया कि सबकुछ ठीक है?
25 सितंबर को जब हाईकमान ने अशोक गहलोत के स्थान पर सचिन पायलट को सीएम बनाने की कोशिश की तो गहलोत के समर्थन में 81 विधायकों ने इस्तीफे दे दिए थे।
इस्तीफों के मामले को पायलट खेमे ने हाईकमान के खिलाफ बगावत बताया था। लंबे समय तक इस्तीफों पर विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई।
जब हाईकोर्ट ने इस बारे में पूछा तो अचानक इस्तीफे वापस हो गए। इससे यह मैसेज गया कि हाईकमान के फैसले के खिलाफ हुए इस घटनाक्रम से हाईकमान को कोई फर्क नहीं पड़ा।
इस्तीफों का मामला खत्म होने के बाद पायलट खेमे को लगा कि जैसे हाईकमान की नजर में यह कोई बड़ी बात नहीं थी।
हाईकमान पायलट को सीएम बनाने के फैसले से क्यों बच रहा है?
कांग्रेस के भीतर राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर यह सवाल बार बार उठ रहा है कि आखिर फैसला क्यों नहीं हो पा रहा है? लगातार खींचतान के हालातों पर कंट्रोल करने में आखिर हाईकमान इतना कमजोर क्यों साबित हो रहा है?
राजस्थान सहित 9 राज्यों में चुनाव भी एक बाधा..
इस साल राजस्थान समेत नौ राज्यों में चुनाव होने हैं। तीन राज्यों में चुनाव की घोषणा हो चुकी है। कांग्रेस से जुड़े जानकार नेता कहते हैं कि पार्टी की राजस्थान सहित सिर्फ तीन ही राज्यों में सरकार है। चुनावी प्रबंधन के लिए इन्हीं तीन राज्यों की भूमिका सबसे अहम रहेगी।
ऐसे में चुनाव प्रबंधन के हिसाब से एआईसीसी यह फैसला लेने से बच रही है कि राजस्थान में सीएम बदला जाए। अभी नागालैंड, मेघालय और त्रिपुरा में भी चुनाव होने हैं।
ऐसे में गहलोत की जरूरत वहां भी रहेगी। इसके बाद कनार्टक और अन्य राज्यों में चुनाव होने हैं। पिछली बार कर्नाटक चुनाव में गहलोत की बड़ी भूमिका रही थी।