भुवनेश्वर देश का इकलौता शहर है, जो 2018 के बाद दूसरी बार विश्व कप का आयोजन कर रहा है.
- भारत ने आख़िरी बार 1975 में अजितपाल सिंह के नेतृत्व में स्वर्ण पदक जीता था.
- भारत के ग्रुप में इंग्लैंड और स्पेन जैसी मजबूत टीमें हैं.
- भारत के पास हरमनप्रीत के रूप अच्छा ड्रैग फ्लिकर. टीम को उनसे काफी उम्मीदें हैं.
- पिछले दो दशकों में सबसे दमदार प्रदर्शन करने वाली टीम में ऑस्ट्रेलिया शामिल.
- पिछले पांच सालों के दौरान बेल्जियम जैसा बेहतर प्रदर्शन किसी अन्य टीम का नहीं रहा है
भारत ने विश्व कप हॉकी में इंग्लैंड को गोलरहित ड्रॉ पर रोक कर ग्रुप डी में पहला स्थान बना कर सीधे क्वार्टर फ़ाइनल में स्थान बनाने की संभावनाओं को बरक़रार रखा है.
भारत सीधे क्वार्टर फ़ाइनल में स्थान बनाने के मामले में इसलिए थोड़ी बेहतर स्थिति में है क्योंकि आख़िरी मैच में भारत को वेल्स से और इंग्लैंड को स्पेन से खेलना है.
भारतीय टीम ने आख़िरी दो क्वार्टरों में जिस आक्रामक हॉकी को खेला, उससे वह जीत की हक़दार थी, पर शायद भाग्य साथ नहीं था. इस कारण ताबड़तोड़ बनाए हमलों को गोल में नहीं बदला जा सका. यह सही है कि भारत को गोल जमाने से रोकने में इंग्लैंड के डिफ़ेंस ने तो अहम भूमिका निभाई ही, पर जब डिफ़ेंस छितरा गया तो भारतीय खिलाड़ी गोल जमाने में सफल नहीं हो सके.
मनप्रीत और हार्दिक रहे मैच के हीरो
भारतीय मिडफ़ील्डर मनप्रीत सिंह और हार्दिक सिंह ने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन किया. भारतीय गोल पर ख़तरा बनने के समय यह दोनों बचाव में मुस्तैद नजर आए.
भारतीय टीम पर एक समय इंग्लैंड टीम दबाव बनाने में सफल हो गई. पर इन मिडफ़ील्डरों की जोड़ी ने अच्छे हमले बनाकर दवाब इंग्लैंड पर बना दिया. भारतीय फ़ॉरवर्डों के निशाने यदि सटीक रहते तो मैच में भारत जीत सकता था.
इंग्लैंड के डिफ़ेंस की तारीफ़ भी करनी होगी. उन्होंने हमलों के समय दिमाग़ को पूरी तरह से ठंडा बनाए रखा और इस कारण उन्हें गेंद को सफ़ाई के साथ क्लियर करने में मदद मिली.
मौके भुनाने में सुधार की ज़रूरत
भारत विश्व कप में इंग्लैंड पर 1994 के बाद विजय नहीं पा सका है, शायद इसका टीम पर मनोवैज्ञानिक दवाब था. पर भारतीय फ़ॉरवर्ड को विपक्षी सर्किल में पहुंचकर थोड़ा संयमित रहने की ज़रूरत है.
आख़िरी समय में सर्किल में हड़बड़ाहट दिखाने की वजह से कुछ नहीं तो दो गोल जमाने से वह चूक गए. इसमें इंग्लैंड के भाग्य की भी भूमिका अहम रही. पर इतना ज़रूर है कि भारत यदि इस बार पोडियम पर चढ़ना चाहता है तो उसे फ़िनिशिंग को सुधारना होगा.
मनदीप ने तीसरे क्वार्टर के आख़िर में और फिर आख़िरी क्वार्टर में दो बार गोल जमाने की स्थिति में पहुंचने के बाद भी जल्दबाज़ी करके मौके बेकार कर दिए.
पहले मौके पर विवेक सागर प्रसाद ने सर्किल में मौजूद मनदीप को पास दिया, वह डिफ़ेंस को छकाने में सफल भी हो गए, लेकिन शॉट को सही दिशा नहीं दे पाने से गेंद गोल के बराबर से बाहर चली गई.
दूसरे मौके पर सर्किल के टॉप पर गेंद मिलने पर उन्होंने अपने पैरों के बीच से आगे खड़े आकाशदीप सिंह को गेंद देने का प्रयास किया पर गेंद सीधे गोलकीपर के पास चली गई.
भारत ने आख़िरी दो क्वार्टर में मूमेंटम प्राप्त किया
भारत ने सही मायनों में दोनों हाफ़ में अलग-अलग तरह का प्रदर्शन किया. पहले दो क्वार्टर में इंग्लैंड ने भारत के मुक़ाबले थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया. पर आख़िरी दो क्वार्टर में खेल पर भारत का दबदबा रहा.
पहले हाफ़ में इंग्लैंड के फ़ॉरवर्ड सेम वार्ड, सेनफ़ोर्ड लियम को रोकने में भारतीय डिफेंस को मुश्किल हो रही थी. लेकिन तीसरे और चौथे क्वार्टर में भारतीय डिफ़ेंस ने उन्हें सर्किल से पहले ही टैकल करने की रणनीति अपनाई.
इसका फ़ायदा टीम को पेनल्टी कॉनर नहीं देने के रूप में मिला.
इंग्लैंड ने पहले दो क्वार्टर में सात पेनल्टी कॉर्नर हासिल किए तो भारत के रणनीति बदलने पर उनको आख़िरी दो क्वार्टर में सिर्फ़ एक ही पेनल्टी कार्नर मिल सका.
हालांकि यह पेनल्टी कॉर्नर खेल समाप्ति में 20 सेकेंड बाकी रहने पर मिला. इसने भारतीय टीम ही नहीं, बिरसा मुंडा स्टेडियम में मौजूद 20 हज़ार भारतीय समर्थकों की भी धड़कनों को बढ़ा दिया.
इसकी वजह यह थी कि इस पर गोल पड़ जाता तो टीम की सारी मेहनत पर पानी फिर सकता था. लेकिन भारतीय डिफ़ेंस चट्टान की तरह डटा रहा और मैच में इंग्लैंड को एक -एक अंक बांटने को मजबूर कर दिया.
टैकलिंग में दिमाग़ लगाने की ज़रूरत
हमें याद है कि कॉमनवेल्थ गेम्स में आख़िरी क्वार्टर में ग़लत टैकलिंग की वजह से पीला कार्ड दिखाए जाने से भारत के 10 खिलाड़ियों का इंग्लैंड ने फ़ायदा उठाकर 1-4 के स्कोर को 4-4 में बदल दिया था.
भारतीय टीम इस ग़लती से भी सीख लेती नज़र नहीं आई. आख़िरी सात मिनट में पहले अमित रोहिदास और फिर जर्मनप्रीत सिंह ग़लत टैकल की वजह से ग्रीन कार्ड पाकर बाहर चले गए.
इंग्लैंड ने इसका फ़ायदा उठाकर कुछ समय के लिए हमलों का दवाब बनाया, पर भारतीय टीम ने इस दवाब से अपने को तत्काल निकालकर अपने को बचा लिया.
यह सही है कि हमलों के समय हमलावरों को टैकल करना ज़रूरी होता है. लेकिन टैकल करते समय दिमाग़ को थोड़ा ठंडा रखा जाए तो इस तरह की स्थिति से बचा जा सकता है.
भारत ने हमलावर ढंग से खेल की शुरुआत की और कुछ अच्छे हमले भी बनाए. पर इंग्लैंड कुछ समय तक आक्रामक रुख़ अपनाकर भारत का मूमेंटम तोड़ने में सफल रहा.
इस तरह इंग्लैंड के खिलाड़ी पहले क्वार्टर में ज़्यादातर समय भारत पर दवाब बनाने में सफल रहे. इस दवाब के कारण ही इंग्लैंड को पहले हाफ़ में सात पेनल्टी कॉर्नर मिले. पर वे किसी को भी गोल में बदलने में कामयाब नहीं हो सके.
इंग्लैंड को पेनल्टी कॉर्नर पर गोल से रोकने में भारतीय मिडफ़ील्डर मनप्रीत सिंह ने अहम भूमिका निभाई. आमतौर पर पेनल्टी कॉर्नरों पर चार्ज करने की भूमिका अमित रोहिदास निभाते हैं.
पर इंग्लैंड को मिले पहले चार पेनल्टी कॉर्नरों के समय अमित मैदान में नहीं थे. इस स्थिति में मनप्रीत ने सही लाइन में दौड़कर इंग्लैंड के हर शॉट के मौके पर एंगेल को बंद करके उन्हें गेंद को गोलकीपर तक ही नहीं पहुंचने दिया.
दर्शकों का भरपूर सहयोग
इंग्लैंड के कोच पॉल रेविंग्टन ने कहा कि ‘भारतीय खिलाड़ियों के पास जब भी गेंद होती थी तो दर्शकों का तेज़ शोर मचता था, इससे किसी भी टीम पर दवाब बन सकता है.
इस स्थिति से बचने के लिए हमने पहले हाफ़ में ज़्यादा गेंद को क़ब्ज़े में रखने का प्रयास किया. पहले हाफ़ में खेल पर 53 प्रतिशत क़ब्ज़ा रखा और टीम को दबाव से बचाया.’
आख़िरी दो क्वार्टरों में इंग्लैंड गेंद को क़ब्ज़े में ज़्यादा नहीं रख सका और भारत के पास ज़्यादा गेंद रहने से दर्शकों ने भरपूर उत्साहवर्धन किया. इस कारण आख़िरी दो क्वार्टर में इंग्लैंड के गोल पर ज़्यादा ख़तरा भी रहा.