प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के सहयोग से आखर सीरीज में आज राजस्थानी भाषा की कवयित्री उषा बजाज देशपांडे रूबरू हुई। उनके कृतित्व व व्यक्तित्व और लोकगीतों के विभिन्न पक्षों पर लेखिका किरण राजपुरोहित ने बातचीत की। लोकगीतों के बारें में बात करते हुए कवयित्री उषा बजाज देशपांडे ने बताया कि लोकगीत राजस्थान में पीढ़ियों से चले आ रहे है और इनमें मिट्टी की सुंगध है। इन गीतों की खासियत यह है कि यह गीत बहुत सीधे और सरल है। इन पर शास्त्रीय संगीत की कोई बंदिश नहीं होने के बावजूद भी यह लय में हैं। लोकगीत जीवन के सरल, साधारण लम्हों का वर्णन होते है।
लोकगीतों के प्रति अपने रूझान के बारें में बताते हुए उषा बजाज ने कहा कि उनकी मां मॉर्डन विचारों वाली थी लेकिन दादी सब पूजा-पा़ठ, वार-त्यौहार में गीत गवाया करती थी। छोटी उम्र में ही ये लोकगीत उनके कानों में पड़ते रहे जिससे उनमें भी सुर-ताल सीखने की लालसा जगी। उन्होनें आगे बताया कि मराठी परिवार में शादी होने के बाद उनके पति ने उन्हें शास्त्रीय संगीत के बारें में सिखाया और सुर-ताल की पहचान भी करवाई। लोकगीतों की विशेषता यह है कि इनमें जीवन के सभी प्रमुख क्षेत्र को व्यक्त किया साथ ही परिवार के मंगल कामना के साथ पूरे समाज के मंगल की कामना की गई है, यह विधायक की आवाज है और जीवन का लय है। लोक भाषा बहुत प्यारी और मीठी है। राजस्थानी गीतों की बड़ी संपदा है। अनपढ़ स्त्रियों द्वारा रचित यह गीत किसी भी बड़े साहित्यकार की रचना से कम नहीं है।
