फेल होने से ज्यादा टेंशन कि मम्मी-पापा क्या कहेंगे: 60% को डर- जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते, हर 11वां बच्चा स्मोकिंग का शिकार
रोज 15-16 घंटे पढ़ाई। सिर्फ 5 घंटे की नींद। हर सप्ताह काबिलियत का टेस्ट…और उससे भी बड़ा डर- जेईई/नीट में सिलेक्शन नहीं हुआ तो? मम्मी-पापा क्या कहेंगे? रिश्तेदार क्या कहेंगे?
ये वो सवाल हैं, जो कोटा में कोचिंग कर रहे हैं लगभग हर एवरेज स्टूडेंट के दिमाग में घूमते हैं। तनाव बढ़ाते हैं। मासूम स्टूडेंट्स के इसी तनाव का फायदा नशे का कारोबार करने वाले उठा रहे हैं। स्ट्रेस दूर करने के नाम पर स्टूडेंट्स को ड्रग एडिक्ट बना रहे हैं।
चाय की थड़ी और किराना स्टोर से लेकर हॉस्टल तक नशे का कारोबार चलाया जा रहा है। भास्कर टीम तीन दिनों तक कोटा के जवाहरनगर और लैंडमार्क सिटी इलाके में घूमी। एक-एक हॉस्टल के बाहर पहुंची और नशे के कारोबार को समझने की कोशिश की।
फोन पर पापा का पहला सवाल- नंबर कितने आए:कोचिंग वालों का सिर्फ टैलेंटेड बच्चों पर ही फोकस, उनका बैच तक अलग है
- कोचिंगों को संडे को छुट्टी रखनी होगी, इस दिन टेस्ट भी नहीं ले सकेंगे।
- IIT और मेडिकल एंट्रेस में सफल न होने की स्थिति में दूसरे कॅरिअर ऑप्शन के बारे में बताया जाएगा।
- स्टूडेंट्स के कोचिंग छोड़ने की स्थिति में फीस रिफंड का प्रावधान होगा।
- कोचिंग के खिलाफ समस्या बताने के लिए एक कम्पलेन्ट पोर्टल बनाएंगे।
- फर्जी प्रचार से छात्रों को बेवकूफ बनाने पर कोचिंग पर सख्त करवाई की जाएगी।
सिर्फ स्टूडेंट्स को देते हैं नशे की पुड़िया
कोटा शहर में जवाहर नगर और लैंडमार्क सिटी में ही अधिकतर कोचिंग इंस्टीटयूट्स हैं। 12 से 15 मंजिल के ऊंचे-ऊंचे हॉस्टल बने हुए हैं। भास्कर टीम ने वहां हॉस्टल के बाहर घूम रहे 100 से ज्यादा बच्चों और दुकानों पर काम करने वाले लोगों से नशे की पुड़िया के बारे में पूछताछ की। कई लोगों ने हमें बताया कि मिलती तो है पर आपको नहीं मिलेगी। पुड़िया लेने वाले के लिए स्टूडेंट होना जरूरी है। हर शॉप वाले, चाय वाले और बाइक पेडलर्स ने अपने कस्टमर स्टूडेंट फिक्स कर रखे हैं। वो अपना माल उन्हें ही बेचते हैं। इसके अलावा किसी को नहीं बेचते।
गर्ल्स हॉस्टल में खाना बनाने वाला बेच रहा नशा
हमने मीडियेटर ढूंढने के लिए कुछ हॉस्टल्स के बाहर जाकर भी पूछताछ की। जवाहरनगर में पेट्रोल पंप की दूसरी गली में एक गर्ल हॉस्टल में खाना बनाने वाले लड़के से भी बात की। वह बोला- अभी पुलिस की कुछ सख्ती चल रही है। पीने वाले लोगों को पुलिस मारपीट कर पूछताछ करती है।
‘मैं भी पहले माल रखता था। अभी कुछ दिनों से नहीं लाता हूं। अब कोई मांगता है तो हाथो-हाथ ही लाकर हॉस्टल में दे देता हूं। तुम्हें चाहिए तो पास से ही दिला देता हूं।’ इसके बाद वह हमारी गाड़ी में हमारे साथ बैठकर कुछ ही दूरी पर हमें एक घर में ले गया। वहां से मात्र दो मिनट में ही एक महिला से नशे की पुड़िया लेकर आया।
लड़के ने हमें बताया कि इस इलाके में अधिकतर मकानों में गांजे का कारोबार चल रहा है। भरपूर माल है। बस ये बिना जान-पहचान किसी को नहीं देते हैं। आपके बारे में भी मुझे पूछ रहे थे। मैंने कह दिया- मेरे मिलने वाले हैं तब जाकर माल दिया है। इसके बाद हमने उसे छोड़ दिया। हॉस्टल जाते हुए उसने अपने लिए पुड़िया से कुछ माल ले लिया और हमारे सामने ही नशा किया।
मेस वाले लड़के ने बताया, स्टूडेंट्स लगाते हैं सुट्टा, उनके लिए लाना पड़ता है
मेस वाले लड़के ने बताया कि कोटा में कोचिंग कर रहे कई लड़के और लड़कियां नशा करते हैं। इससे नींद अच्छी आती है और दिमाग हल्का हो जाता है। गांजा सस्ता पड़ता है और सिगरेट में आसानी से भरकर कहीं भी बैठकर पी सकते हैं तो स्टूडेंट्स इसे ही पसंद करते हैं।
वो बोला- कुछ स्टूडेंट्स ने तो अपनी सेटिंग किराना की दुकानों और चाय की थड़ियों पर कर रखी है। वहीं, कुछ स्टूडेंट्स सीधे बाइक पेडलर्स के संपर्क में हैं, जिन्हें शाम होते ही हॉस्टल के बाहर डिलीवरी मिल जाती है। इसके अलावा कुछ स्टूडेंट्स को डर लगता है तो उन्हें हम लाकर दे देते हैं। इससे हमारा नशा भी हो जाता है और थोड़ी कमाई भी हो जाती है। अभी 3 सुसाइड्स के बाद पुलिस सख्ती बढ़ने के बाद स्टूडेंट्स को हॉस्टल के अंदर ही सप्लाई मिल रही है।
किराने की दुकानों और घरों से बेच रहे गांजे की पुड़िया
जवाहर नगर इलाके में ही किराने की दुकानों पर नशे की पुड़िया बेची जा रही है। हॉस्टल के कर्मचारी और फिक्स स्टूडेंट्स यहां से पुड़िया लेकर आते हैं। इसके अलावा चाय की दुकानों पर अलग से रोजाना आने वाले बच्चों को ही ये पुड़िया दी जाती है। इन दुकानों पर मिट्टी की बनी हुई गोगो (चिलम) भी बेची जाती है। सिगरेट और गांजे को मिक्स करके ही गोगों में मिलाकर स्टूडेंट्स नशा करते हैं। चाय की दुकानों पर बैठाकर नशा कराने वालों पर भी पुलिस ने लगातार दो दिनों तक कार्रवाई भी की। वहां से 20 से ज्यादा बाइकों को जब्त भी किया था।
स्टूडेंट्स को बेच रहे नशा और चिलम
कुछ लड़कों ने हमें नशे बेचने वालों की दुकान भी बताई जहां स्टूडेंट्स की भारी भीड़ लगी हुई थी। हम वहां पहुंचे और दुकानदार से सिगरेट और पुड़िया मांगी। उसने हमें घूरकर देखा और बोला नहीं मिलती है। फिर दोबारा से संभला और बोला कि आप किस पुड़िया की बात कर रहे हो। हमने कहा कि गांजे की पुड़िया चाहिए। वो झेंप गया और मना कर दिया। उसे हमारे ऊपर शक हो गया था। उसने बोला कि ये किराने की दुकान है, यहां ऐसा काम नहीं होता है। हम वापस कुछ दूरी पर लौट कर आ गए और इंतजार करने लगे। उसी दुकान से कोचिंग इंस्टीटयूट के बच्चे पुड़िया और गोगो ले जा रहे थे।
कौन चलाता है नशे का कारोबार
जांच में पता लगा कि लगातार तीन-चार सालों तक जो स्टूडेंट पास नहीं हो पाते हैं, वे नशे के कारोबार में जुड़ जाते हैं। उनका पूरा एक बड़ा ग्रुप तैयार हो जाता है। इनमें से अधिकतर स्टूडेंट वापस घर नहीं लौट पाते हैं। ज्यादातर हॉस्टल लीज पर ले लेते हैं और फिर नशे का भी काम करने लग जाते हैं। पुलिस का भी मानना है कि कोटा की गली-गली में छोटी-छोटी पुड़िया बनाकर बेचा जा रहा है। बड़े लेवल का पता लगने पर कार्रवाई करते हैं। पिछले महीने ही पुलिस ने 12 किलो गांजे की खेप भी पकड़ी थी।
बच्चा, बंशी, डिब्बा जैसे कोड वर्ड
कोटा में नशा बेचने वालों ने स्मैक और चरस, गांजे के लिए अलग-अलग कोड वर्ड बना रखे हैं। सबसे खास कोड वर्ड बच्चा, बंशी, टिकट, पुड़िया, माल, टयूब, पीपी, डिब्बा और पन्नी जैसे शॉर्ट नेम है। कोटा शहर में जवाहरनगर व लैंडमार्क सिटी के अलावा कुन्हाड़ी, नयापुरा, घोड़ाबस्ती,केशवपुरा,तलवंडी, सकतपुरा, हरिओम नगर, रंगबाड़ी, एलआईसी, तीन बत्ती सर्किल पर नशे की पुड़ियां आसानी से मिल जाती है।
बेचने के तीन तरीके होम डिलीवरी, वॉट्सऐप ग्रुप , सप्लायर के अड्डे
सप्लायर ने शहर में नशे को बेचने के लिए तीन तरीके बना रखे हैं। सीधे ही डिमांड करने पर बाइक से होम डिलीवरी कर देते हैं। स्टूडेंट पुड़िया की जरूरत पड़ने पर मोबाइल से कॉल कर देते हैं। उन्हें बिचौलिया बाइक पर लाकर दे देते है। इसके अलावा सप्लायर्स ने वॉट्सऐप ग्रुप बना लिए है। ग्रुप में ही डिमांड व लोकेशन भेज दी जाती है। जिस पर तुरंत किसी भी चौराहे व सुनसान जगह पर माल भेज दिया जाता है। नशे का कारोबार करने वालों ने अड्डे बना रखे है। यहां पर बड़े स्तर पर माल रखते हैं। जिसे भी नशा लेना होता है वो सीधे इन अड्डों पर पहुंच जाता है। इन्हीं अड्डों से ही बाइक पर 10 से 20 की संख्या में पुड़िया लाकर सप्लायर्स बेचते हैं।