11/12/2023
खोज खबर देश राजनीति

‘थैंक्यू मोदी’ विज्ञापन पर गुजरात समेत बीजेपी शासित राज्यों ने फालतू बहाए लगभग 18 करोड़ से अधिक रुपये

कई बीजेपी शासित प्रदेशों में ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने के लिए’ लगाए गए विज्ञापन. इन विज्ञापनों में हुआ कुल ख़र्च – 18 करोड़ 3 लाख 89 हज़ार 252 रुपये. गुजरात सरकार ने ख़र्च किए2 करोड़ 10 लाख 26 हज़ार 410 रुपये. उत्तराखंड सरकार ने ख़र्च किए 2 करोड़ 42 लाख 84 हज़ार 198 रुपये.

विज्ञापनों में क्या था?

बीबीसी गुजराती सेवा द्वारा दायर आरटीआई (सूचना के अधिकार) आवेदन में प्राप्त दस्तावेज़ों और जवाब की जांच करने के बाद पता चला है कि गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और कर्नाटक की भाजपा शासित सरकारों ने कोरोना टीकाकरण को बढ़ावा देने, प्रधानमंत्री आवास योजना और ‘नल से जल’ योजना के लिए ‘धन्यवाद प्रधानमंत्री मोदी’ का विज्ञापन जारी किया था.

गुजरात, उत्तराखंड, हरियाणा और कर्नाटक की राज्य सरकारों ने कोरोना महामारी के दौरान ‘सभी के लिए वैक्सीन, फ्री वैक्सीन थैंक्स मोदीजी’ विज्ञापन जारी करने के लिए करोड़ों रुपये ख़र्च किए.

आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, गुजरात सरकार ने क़रीब दो करोड़ 10 लाख रुपये, उत्तराखंड सरकार ने दो करोड़ 42 लाख रुपये, हरियाणा सरकार ने एक करोड़ 37 लाख रुपये और कर्नाटक सरकार ने दो करोड़ 19 लाख रुपये ख़र्च किए.

बीबीसी ने इस बारे में आरटीआई से जानकारी मांगी थी. बीबीसी ने आरटीआई के तहत आवेदन देकर पूछा था कि 21 जून 2021 से अलग-अलग मीडिया के जरिये सभी के लिए वैक्सीन, फ्री वैक्सीन थैंक्स मोदीजी’ विज्ञापन या प्रचार अभियान चलाया गया था. उस पर कितने पैसे खर्च किए थे?

बीबीसी ने इसी तरह के समान संदेशों को अलग-अलग भाषाओं के विज्ञापनों में जारी करने के लिए खर्च की गई रकम की भी जानकारी मांगी थी. इसके साथ ही इन विज्ञापनों और प्रचार अभियान के लिए मंजूर की गई स्क्रिप्ट और संदेशों की भी कॉपी मांगी थी.

ये जानकारियां गुजरात, उत्तराखंड, हरियाणा और कर्नाटक सरकार से मांगी गई थी.

बीबीसी ने आरटीआई आवेदन के जरिये पूछा था कि इन विज्ञापनों और प्रचार अभियान के लिए होर्डिंग्स, बोर्ड और सार्वजनिक जगहों पर संदेश देने के माध्यमों पर कितना खर्च किया गया है.

दिल्ली क्षेत्र में ‘पूरी हुई आस, स्वच्छ नल जेल से बुझेगी हर घर की प्यास’, ‘जल जीवन मिशन’, ‘धन्यवाद मोदी जी’ और ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’, ‘सच हुआ सपना घर हुआ अपना’, टधन्यवाद मोदी जी’ जैसे विज्ञापन और प्रचार अभियान के तहत जनसंपर्क विभाग की ओर से चलाया गया था.

बीबीसी ने 1 मार्च 2022 से लेकर अभी तक इन अभियानों के तहत खर्च की गई रकम की जानकारी मांगी थी.

पिछले साल यह भी ख़बर आई थी कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारों से ‘कोरोना वैक्सीन के लिए प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद’ देने के विज्ञापन देने को कह रही है.

न्यूइंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आरोप लगाया था कि सभी को मुफ़्त टीके उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद देने के लिए मीडिया में विज्ञापन चलाने को केंद्र सरकार द्वारा राज्य के अधिकारियों पर दबाव डाला जा रहा है.

बीबीसी गुजराती ने यह जानने के लिए आरटीआई दायर किया कि क्या कुछ ग़ैर-बीजेपी राज्यों में भी ऐसी कोई घोषणा की गई है.

याचिका के जवाब में दिल्ली और महाराष्ट्र (जिसमें जून 2021 में ग़ैर-बीजेपी सरकार थी) ने कहा, “इन राज्यों की सरकारों द्वारा ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई थी.”

इसके अलावा, मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में बताया कि उसने ‘नल से जल’ योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना के विज्ञापन में ‘प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद’ देने के लिए 9,94,35,154 रुपये ख़र्च किए थे.

‘सार्वजनिक धन का दुरुपयोग’

बिज़नेस स्टैंडर्ड अख़बार के राजनीतिक विश्लेषक और राजनीतिक संपादक सिद्धार्थ कलहंस ने इन विज्ञापनों को ‘जनता के पैसों की बर्बादी’ बताया.

उन्होंने कहा, “बीजेपी सरकार में पिछले कुछ सालों से इस तरह का पैटर्न देखने को मिला है कि वो किसी योजना या पहल के बहाने प्रधानमंत्री की छवि लोगों के सामने पेश करने में लगे हैं. और यह दुर्भाग्य है कि इसके लिए लोगों के पैसे ख़र्च किए जा रहे हैं.”

सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, “सरकार या प्रधानमंत्री के काम को बढ़ावा देने के लिए अब चुनाव का इंतज़ार नहीं है. उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में विज्ञापन के लिए एक अलग कोष की व्यवस्था की जाती रही है.”

उन्होंने ये भी कहा, “बीजेपी के विज्ञापन और इसके द्वारा प्रोपेगैंडा करना, इस तरह के विज्ञापनों के लिए दरवाज़ा खोल देता है.”

वहीं राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पटेल पूरे मामले पर अपनी राय रखते हुए कहते हैं, “अगर एक साथ इतने राज्यों में ऐसी घोषणाएं की जाती हैं तो इसका मतलब यह भी है कि उन्हें ऐसा करने का निर्देश ऊपर से दिया गया होगा. इसके अलावा इस तरह के विज्ञापनों के पीछे का मक़सद प्रधानमंत्री को ‘सर्वशक्तिमान’ के तौर पर पेश करना भी है.”

वह इस तरह के विज्ञापनों की निरर्थकता के बारे में बात करते हुए कहते हैं, “इस तरह के विज्ञापनों का उद्देश्य केवल एक राजनीतिक हस्ती की छवि को बढ़ावा देना है इनसे आम आदमी की मुश्किलों के बारे में पता नहीं चलता है जिसके लिए वास्तव में विज्ञापन बनाए जाने चाहिए. योजना या जन कल्याण को बढ़ावा देने का कोई उद्देश्य भी प्रतीत नहीं होता है.”

इस मामले में बीजेपी का पक्ष जानने के लिए बीबीसी गुजराती ने पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता से संपर्क किया. उन्होंने ईमेल द्वारा जवाब दिया कि ‘उन्हें पूरे मामले की ‘जानकारी’ नहीं है, और यह कि ‘ऐसा नहीं लगता कि यह पार्टी से संबंधित है.’

इसके अलावा मामले को स्पष्ट करने के लिए गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और कर्नाटक राज्य के मुख्य सचिवों को भेजे गए ईमेल का अभी तक कोई जवाब नहीं आया है.

क़ानूनी नज़रिया

भारत के जानेमाने लॉ स्कूल, नेशनल लॉ स्कूल ऑफ़ इंडिया में क़ानूनी विशेषज्ञ और सहायक प्रोफ़ेसर नंदिता बत्रा ने ‘थैंक्यू मोदी’ विज्ञापनों को ‘आश्चर्यजनक’ क़रार दिया.

उन्होंने ‘थैंक यू मोदीजी’ विज्ञापनों को “देश की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर चल रही व्यक्तिवादी राजनीति का विस्तार” क़रार दिया.

नंदिता बत्रा के मुताबिक़, “अजीब लगता है कि सरकार अपने ही प्रधानमंत्री को अपनी ही संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाने के लिए धन्यवाद दे! सार्वजनिक ख़र्च पर किए जा रहे इस तरह के प्रचार की वैधता पर सवाल उठना स्वाभाविक है.”

नंदिता बत्रा विज्ञापनों के क़ानूनी पहलू के बारे में आगे कहती हैं, “कॉमन क़ॉज बनाम भारत सरकार (2015) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार की उपलब्धियां प्रचार का विषय नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह एक ऐसा नज़रिया होना चाहिए जिसे नागरिक महसूस कर सकें. लेकिन ऐसे विज्ञापनों का असर जनता तक सरकार के कार्यों के बारे में जानकारी पहुंचाने का भी होता है और इसलिए इसकी अनुमति दी जा सकती है.”

“अदालत ने ऐसे विज्ञापनों में संवैधानिक पदाधिकारियों की तस्वीरें लगाने पर रोक लगा दी लेकिन जनहित के आधार पर इसकी अनुमति भी दी. इसलिए ऐसे विज्ञापनों को जनहित का मामला माना जाता है.”

सरकारी विज्ञापन को लेकर क्या है सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय में कॉमन क़ॉज एंड सेंटर फ़ॉर पब्लिक द्वारा एक याचिका दायर की गई थी. इसमें सरकारी योजनाओं के विज्ञापन और प्रचार के लिए सरकार द्वारा सार्वजनिक पैसे के विवेकपूर्ण और उचित उपयोग के लिए निर्देश देने और इसकी निगरानी के लिए दिशानिर्देश देने की मांग की गई थी. कोर्ट ने इसके लिए एक कमेटी गठित की.

इस समिति द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देशों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सरकारी विज्ञापनों में राजनीतिक तटस्थता रखी जानी चाहिए. यह भी कहा गया है कि विज्ञापनों में किसी राजनेता का महिमामंडन करने से बचें.

सत्ता में पार्टी की सकारात्मक छवि पेश करने और विरोधी पार्टी की नकारात्मक छवि पेश करने के लिए विज्ञापनों के लिए सरकारी धन का उपयोग करना भी प्रतिबंधित है.

इसके अलावा, राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा उनके शासन के कुछ दिनों या वर्षों के पूरा होने के अवसर पर विज्ञापन जारी किए जाते हैं.

हालांकि, न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, ऐसे विज्ञापनों का उद्देश्य प्रचार नहीं होना चाहिए, बल्कि सरकारी कार्यों के परिणामों के बारे में जनता को सूचित करने का प्रयास होना चाहिए.

इन याचिकाओं के निस्तारण के क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी विज्ञापनों और प्रचार का उद्देश्य जनता को सरकार की योजनाओं और उसकी नीतियों के बारे में बताना होना चाहिए.

इस प्रकार, दिशानिर्देश जनता को सूचित करने के उद्देश्य की स्वीकार्यता और एक राजनेता के महिमामंडन की अस्वीकार्यता पर विशेष जोर देता है.

Related posts

बागी विधायक लौटेंगे मुंबई ,महाराष्ट्र में कल होगा फ्लोर टेस्ट

Such Tak

पहलवानों ने किया आंदोलन खत्म करने का ऐलान: साक्षी-विनेश-बजरंग बोले- आगे की लड़ाई कोर्ट में लडे़ंगे

Such Tak

1999 में IC-814 के अपहरण के दौरान रिहा हुए मुश्ताक अहमद जरगर को आतंकवादी घोषित किया गया

Such Tak