30/09/2023
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CJI ने सरकार को कहा- सील बंद लिफाफे देने का रिवाज बंद करो

भारत के चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने आज सोमवार 20 मार्च को वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अदालतों में सील बंद लिफाफे के जरिए जवाब देने का इस्तेमाल बंद किया जाए। सीजेआई ने पेंशन भुगतान पर रक्षा मंत्रालय के फैसले पर अटॉर्नी जनरल द्वारा पेश मुहरबंद लिफाफे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। चीफ जस्टिस ने कहा कि इसमें जो लिखा है, उसे पढ़कर सुनाइए या फिर इसे वापस लीजिए। अंत में सुप्रीम कोर्ट ने ओआरओपी पर अपना फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिया कि 28 फरवरी 2024 तक पूर्व सैनिकों को ओआरओपी का सारा बकाया भुगतान दिया जाए।

चीफ जस्टिस ने यह नाराजगी हालांकि एक केस के संबंध में जताई है। लेकिन इधर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के रिश्ते तल्ख होते जा रहे हैं। तमाम मुद्दों पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की राय से सरकार की राय तालमेल नहीं खा रही है। अभी पिछले हफ्ते सीजेआई को ट्रोल किया गया। ट्रोल करने वालों का संबंध एक बड़े राजनीतिक दल से बताया गया है। अभी शनिवार को इंडिया टुडे के कार्यक्रम में चीफ जस्टिस ने कहा था कि किसी मुद्दे पर कानून मंत्री की धारणा अलग है, मेरी अलग है। सुप्रीम कोर्ट का कॉलिजियम सिस्टम सबसे बेहतर सिस्टम है। बता दें कि कॉलिजियम सिस्टम पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव होता रहता है।

तमाम सख्त टिप्पणियों और तीखी बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जो अंतिम फैसला सुनाया है, उसमें कहा गया है कि सरकार को 30 जून, 2023 तक एक या एक से अधिक किश्तों में 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के रिटायर्ड सैनिकों के ओआरओपी बकाया का भुगतान करने और 30 अप्रैल तक छह लाख पारिवारिक पेंशनरों और वीरता पुरस्कार विजेताओं को लंबित ओआरओपी बकाया का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि बकाये का भुगतान  फरवरी 2024 में किए जाने वाले पूर्व सैनिकों की पेंशन के समतुल्यीकरण (equalisation of pension) को प्रभावित नहीं करेगा।फैसला सुनाने से पहले अदालत ने सख्त टिप्पणियां कीं। लाइव लॉ के मुताबिक सीजेआई चंद्रचूड़ ने आज सोमवार को कहा कि हम कोई गोपनीय दस्तावेज या सीलबंद लिफाफे नहीं लेंगे और मैं व्यक्तिगत रूप से इसके खिलाफ हूं। अदालत में पारदर्शिता होनी चाहिए। यह आदेशों को लागू करने के बारे में है।

भारत के चीफ जस्टिस ने सीलबंद लिफाफे को ‘पूरी तरह से स्थापित न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ’ बताया। डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा- इसका सहारा तभी लिया जा सकता है जब यह किसी सोर्स के बारे में हो या किसी के जीवन को खतरे में डालने वाला हो। 

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