शाम के वक़्त हज़ारों गौरैयों के शोर के कारण बिजनौर के शेख़ जमाल की हवेली के भीतर एक अलग ही रौनक दिखती है.
छत पर कभी चिड़ियों का झुंड एक से दूसरी तरफ उड़ता दिखता है तो कभी मुंडेरों पर गौरैयों का झुंड बैठा होता है. जैसे-जैसे रात गहराती है, आहते में लगे पेड़ों और बेलों पर गौरैयों की संख्या बढ़ती जाती है. कुछ देर बाद ये सो जाती हैं और हवेली में गहरी खामोशी छा जाती है.
उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले के स्योहारा इलाक़े में है, मोहल्ला शेख़ान. इसी मोहल्ले की एक संकरी गली में नवाब शेख़ जमाल और उनके भाइयों की एक हवेली है. हवेली के भीतर प्रवेश करते ही आहते में कुछ पेड़ दिखते हैं. यही पेड़ इन तमाम चिड़ियों का बसेरा बन गए हैं. आंगन में कई क़िस्मों की बेलें, एक आम और एक अमरूद का पेड़ है. गौरैयों ने इन पेड़ों को अपना मुख्य ठिकाना बनाया हुआ है. यहीं, दूसरे छोर पर शेख़ जमाल के परिवार के रहने के लिए पांच कमरे और एक रसोई है.
कई पीढ़ियों से यहां रह रही हैं गौरैया
शेख़ जमाल ने बीबीसी हिंदी से कहा, “मेरे दादा के समय से घर में गौरैया पाली जा रही हैं. पहले हमारे घर के कमरों की छतों में कड़ियां हुआ करती थीं. इन कड़ियों के भीतर ही गौरैया अपना घोंसला बनाया करती थीं. बाद में घर के कुछ हिस्सों में छत डाली गई. वहां से चिड़ियों के घोंसले हटाने पड़े. फिर हमने पेड़ों में और दूसरी जगहों पर घोंसले बना दिए.” शेख़ जमाल कहते हैं कि घर का एक बड़ा हिस्सा पुराने ही ढंग से बना हुआ है क्योंकि उसे तोड़कर बनाया तो गौरैया के यहां से चले जाने का डर है.
‘सभी लोग एक साथ बाहर नहीं जाते’
शेख़ जमाल बताते हैं, “पिछले 40 सालों से मैं गौरैयों की देखभाल कर रहा हूं. दिन के तीनों वक़्त उनके लिए दाना-पानी की व्यवस्था करता हूं. शादी-ब्याह में भी घर के सभी लोग बाहर नहीं जाते बल्कि एक व्यक्ति को उनकी देखभाल के लिए घर पर रुकना होता है.” “मैं चाहता हूं कि इनकी संख्या बढ़ाने के लिए सरकार पार्कों में उनके लिए सुविधाएं बनाए. इसकी ज़िम्मेदारी पक्षी प्रेमियों को दी जानी चाहिए.”