राजस्थान में कोरोना की तीनों लहर डरावनी रही। पहली वेव में जहां संक्रमितों के आंकड़ों से खौफ रहा था। दूसरी वेव में मौतों ने दहला दिया था। तीसरी वेव में ओमिक्रॉन का डर रहा। दोनों वेव की तुलना में एक माह में सबसे अधिक 3.15 लाख पॉजिटिव आए। हालांकि राहत की बात यह रही कि यह घातक नहीं रही।
तीसरी लहर में के शुरुआती 49 दिनों की रिपोर्ट की तुलना दूसरी लहर के शुरुआती दिनों से की जाए तो इस बार केस और मौत बहुत कम हुई। राज्य में एक जनवरी से 18 फरवरी तक जो संक्रमित केस आए, वह दूसरी लहर में आए केस से 43 फीसदी कम रहे हैं। वहीं, तीसरी लहर में जितनी मौत इस बार हुई, उसकी 7 गुना ज्यादा मौत दूसरी लहर में हुई थी। यही कारण रहा कि इस बार सरकार ने हॉस्पिटल की स्थिति देखते हुए न तो ज्यादा पाबंदियां लगाई और जो लगाई वो भी कुछ दिन बाद ही हटा ली।
पहली लहर में केस कम, मौत ज्यादा हुई
प्रदेश में पहली लहर की पीक का असर 2 महीने रहा। अक्टूबर-नवंबर 2020 में कुल 1 लाख 16,061 केस आए थे, जबकि इन दो महीनों में 826 मरीजों की मौत हुई थी। दिसंबर के दूसरे सप्ताह से केस कम होने लगे थे और कोरोना कंट्रोल आने लगा था। उस समय भी लोग हॉस्पिटल पहुंच रहे थे, लेकिन दूसरी लहर जैसी घातकता नहीं थी। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि कोरोना की तीसरी लहर की तुलना में पहली और दूसरी लहर ज्यादा डरावनी व घातक रही थी।
दूसरी लहर में मची मारामारी
कोरोना की दूसरी लहर अप्रैल 2021 से शुरू हुई, जो 2 महीने यानी मई अंत तक रही। शुरुआती 49 दिन (एक अप्रैल से 19 मई तक) राज्य में कुल 5 लाख 56,364 लोग इस संक्रमण की चपेट में आए थे, इसमें से 4 हजार एक मरीजों ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था। ये तो सरकारी आंकड़े थे, जबकि माना ये जा रहा था कि कई लोग तो हॉस्पिटल भी नहीं पहुंच सके थे और घर या हॉस्पिटल लाते समय ही मर गए थे। दूसरी लहर में डेल्टा वैरिएंट से लंग्स बुरी तरह डैमेज हो रहे थे, जिसके कारण ही ऑक्सीजन की डिमांड इतनी ज्यादा हो गई थी राज्य और केन्द्र सरकार की भी ऑक्सीजन सप्लाई देने में सांस फूल गई थी। स्थिति ये हो गई थी हर रोज राज्य में ऑक्सीजन की खपत 500 मीट्रिक टन से ज्यादा हो गई थी। ऑक्सीजन की डिमांड ज्यादा होने के कारण हॉस्पिटल 20-25 दिन तक फुल रहे और एक-एक बेड के लिए मारामारी मची हुई थी।
तीसरी लहर में 537 लोगों की मौत
तीसरी लहर की रिपोर्ट देखें तो एक जनवरी से 18 फरवरी तक कुल 3,15,253 केस मिले, जिसमें से 537 मरीजों की मौत हो गई है। राहत की बात ये है कि इस बार हॉस्पिटल में केवल 2 फीसदी ही मरीजों को इलाज के लिए भर्ती होना पड़ा है। इसमें भी ज्यादातर मरीज वे थे जो दूसरी बीमारियों से ग्रसित थे। ये मरीज अब हॉस्पिटल में अपनी दूसरी बीमारी के लिए भर्ती हुए और उनकी प्रोटोकॉल के तहत जब कोरोना की जांच करवाई तो वह पॉजिटिव निकल गई। वहीं जिन लोगों की मौत इन 49 दिनों में हुई उसमें 95 फीसदी से ज्यादा वही थी, जो पुरानी किसी न किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। यही कारण रहा कि इस बार ऑक्सीजन की मांग पहली और दूसरी लहर के मुकाबले बहुत कम रही। क्योंकि इस बार कोरोना का ज्यादातर इफेक्ट गले या मुंह तक सीमित रहा, जबकि दूसरी लहर में सबसे ज्यादा लंग्स पर था।
यूं रहा लॉकडाउन का समय
- पहली लहर में केन्द्र सरकार की ओर से सम्पूर्ण लॉकडाउन मार्च से मई तक लगाया गया। मई के पहले सप्ताह से लॉकडाउन हटाकर पाबंदियां खोली गई। हालांकि दिसंबर तक कई तरह की पाबंदियां लगी रही। ट्रेनों का संचालन भी दो महीने बंद रहा। वहीं एयरलाइंस, बसों का संचालन भी दो महीने बंद रहा। स्कूल-कॉलेज, धार्मिक स्थल, शादी-समारोह पर पहली लहर के दौरान अप्रैल 2020 से दिसंबर 2020 तक पूर्ण रूप से पाबंदियां लगी रही।
- दूसरी लहर में सरकार ने 9 अप्रैल 2020 से पाबंदियां लगाना शुरू किया और चरणबद्ध तरीके से इसे बढ़ाते चले गए। एक जून से सरकार ने पाबंदियों में ढील देना शुरू किया और मध्य जून तक सभी पाबंदियों को हटाया। इस दौरान नाइट कर्फ्यू, स्कूल-कॉलेज बंद करने, जिम, सिनेमाघर, शादी-समारोह समेत अन्य आयोजनों पर लोगों ने रोक लगाने के अलावा कुछ समय के लिए आंशिक लॉकडाउन भी लगाया गया। दुकानें केवल सुबह 6 से 11 बजे तक ही खुली थी। बसों का संचालन एक-दूसरे राज्य में बंद कर दी थी।
- कोरोना की तीसरी लहर में ओमिक्रॉन वैरिएंट का खतरा पूरे विश्व में फैल गया था, जिसे देखते हुए राज्य सरकार ने जनवरी से कोविड की गाइडलाइन जारी करते हुए नाइट कर्फ्यू, स्कूल-कॉलेज बंद करने, जिम, सिनेमाघर, शादी-समारोह समेत अन्य आयोजनों पर लोगों ने रोक लगा दी। हालांकि हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों की संख्या 2 फीसदी से भी कम रहने और गंभीर केस बहुत कम आने के चलते सरकार ने एक महीने में ही सभी पाबंदियां हटा ली।