कन्हैयालाल साहू की तालिबानी तरीके से हत्या के बाद उनकी बिलखती हुई पत्नी ने जो ये शब्द कहे, ऐसा ही गुस्सा देशभर में दिखा। मांग उठ रही कि जल्द से जल्द गौस और रियाज को फांसी के फंदे पर लटकाया जाए। NIA ने भी तेजी दिखाई और 9 धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू की। …लेकिन क्या भारत में इतना आसान है किसी अपराधी को फांसी के फंदे तक पहुंचाना?
मंडे स्पेशल में आज इसी मुद्दे पर पड़ताल…। भास्कर ने इंटरनेशनल लॉ एक्सपर्ट, सुप्रीम कोर्ट के वकीलों से जाना कि जिन 9 धाराओं में NIA ने मामला बनाया है, उसमें अधिकतम कितनी सजा हो सकती है, इसकी तुलना दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के फेडरल पीनल कोड से कराई। कन्हैया के गुनहगारों को जहां भारत में महज 20 साल तक जेल का प्रावधान है, अमेरिका में उसकी सजा बड़ी ही खौफनाक है। एक बार जेल जाने का मतलब बाहर केवल मुर्दा लाश आना है। इस जुर्म की सजा इतनी लंबी है कि भुगतने के लिए 5 शताब्दियां भी कम पड़ जाएं। वहीं ऐसी हिमाकत करने वालों को ‘मौत का इंजेक्शन’ (Lethal Injection) देने का भी प्रावधान है।
अमेरिका के मुकाबले भारत का ट्रायल प्रोसेस लंबा
ग्लोबल लॉ एक्सपर्ट समर्थ कुमार ने बताया कि अमेरिका के मुकाबले देश का ट्रायल सिस्टम बहुत ज्यादा लंबा है। हमारे यहां लोअर कोर्ट्स में एवरेज ट्रायल टाइम 2 से 5 साल है जबकि अमेरिका में ये महज 6 महीने है। वहीं भारत में इसके बाद अपील व हायर कोर्ट्स का एवरेज ट्रायल टाइम तो तकरीबन 15-30 साल तक है, जबकि अमेरिका में अगले 9 महीने से 36 महीने में सभी हायर कोर्ट्स से फाइनल जजमेंट तक आ जाता है।
एडवोकेट अजय कुमार जैन ने बताया कि ब्रिटिश काल के दौरान साल 1860 में लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले की बनाई भारतीय दण्ड संहिता (इंडियन पीनल कोड) देश में लागू की गई थी। ये बहुत पुराना है, हालांकि इसमें समय-समय पर संशोधन होते रहे है। हमारे देश में अमेरिका के फेडरल पीनल कोड की तुलना में अपराधों में दी जाने वाली सजा बहुत कम है।
अमेरिका में नहीं मिलती पेरोल
अमेरिका में फेडरल पीनल कोड के तहत अपराध में अधिकतम में सैंकड़ों साल की सजा और मृत्युदंड की सजा है। वहां मृत्युदंड में भी अपराध की गंभीरता अनुसार लीथल इंजेक्शन के द्वारा, इलेक्ट्रिक चेयर के द्वारा, लीथल गैस के चेंबर में बंद करके, फांसी पर लटकाकर और फायरिंग के द्वारा मौत की सजा दी जाती है। वहीं वहां सैंकड़ों साल की सजा पाने वाले अपराधियों को कई मामलों में पेरोल भी नहीं दी जाती है। मतलब वो मौत होने तक जेल में ही बंद रहता है। अमेरिका के साथ-साथ न्यूजीलैंड, जापान और चाइना सहित भी कई देशों में सैंकड़ों साल और मृत्युदंड की सजा का प्रावधान है।
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय ने बताया कि दंड विधान का बेसिक यही है कि अपराधियों में कानून का डर होना चाहिए। जब तक दंड विधान मौजूदा दौर के लिहाज से सख्त नहीं होगा तब तक ऐसे अपराधों पर लगाम लगा पाना मुश्किल है। भारत में अलग-अलग अपराधों के लिए एक क्रिमिनल को एक अधिकतम सजा भुगतनी होती है, जबकि वहीं अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में उसे सभी मामलों में अलग-अलग सजा भुगतनी होगी। जो हजारों सालों तक है। 7 मई, 2019 को, अमेरिका में एक स्कूल में फायरिंग हुई। इसमें एक स्टूडेंट की मौत हो गई और 8 जने घायल हो गए। इस घटना के महज 2 साल बाद साल 2021 में दो स्टूडेंट को अलग-अलग दर्जनभर मामलों में दोषी ठहराया गया और उन्हें बिना किसी पेरोल के 1282 साल के आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।